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<poem>आधे हुए पौने हुए
सूरज चढ़े मीनार पर
:::बौने हुए
अंधी सरायों में
फिर गुंबजों के खेल में
:::हैरान मृगछौने हुए
लादे हवाओं के किले
टूटे घरौंदों की गली से
:::धूप के गौने हुए
</poem>
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