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|रचनाकार=शिव कुमार झा 'टिल्लू'
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<poem>वरक रूप देखि सभ बमबम छमछम सारि नाचै छथि ना
गितहारिन सभ मंद मुसकि क' कोबर गाबै छथि ना .....
अपने सरहोजि आसन ओछौलनि
कनिया वर केँ संग बैसौलनि
गितहारिन लेल सासु विलक्षण विझणी बाँटै छथि ना ....
नवका दुलहा गुणक सरोवरि
धन सम्पति सभ सेहो बरोवरि
सखि सभ जखन बहुत उकसाबथि तखने बाजै छथि ना ....
कनेको टका नहि लागल कक्का
तखन किये छी हक्काबक्का
रुसबाकाल सेहो जमाय नहि किछुओ मांगै छथि ना........
आइ चतुर्थी पावनि मनबियौ
सौंसे टोल केँ माँछ खुअबियौ
सुनिते ससुर ठहक्का मारि स्वीकार करै छथि ना .......
सभ बेटीकेँ भेंटै एहने वर
नहि मैथिली केँ भेटनि बनचर
ई कहि फुलकाकी फुलकी लेल आँटा सानै छथि ना......</poem>
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