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मोगरा / राग तेलंग

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<poem>एक दिन तो ऐसा आ ही जाता है

आप कहते हैं- मोगरा !
और आपके गिर्द
समूचा बागीचा आ जाता है
तमाम खिले हुए
मोगरों की खुशबुओं के साथ

आपको अब
किसी की भी प्रतीक्षा नहीं है
न ही कोई आपकी राह देख रहा है

यह एकाकार होना है
स्पष्टत:

नहीं समझे !

देखो !
कहीं किसी ने कहा है - मोगरा !
और तुम !
महक उट्ठे हो ।
</poem>
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