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बावजूद इन सबके / राग तेलंग

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<poem>अब बहुत सस्ती-सस्ती चीजें
विरासत में मिली अनमोल संपदा को
विखंडित करने की तैयार में है

इसके बावजूद मुट्ठियां कसना बंद नहीं किया है
बच्चों और बुजुर्गों ने
आकाश की ओर तकते हैं सब
जब बड़ा सा रंगीन गुब्बारा
विज्ञापित कर रहा होता है खुद को

इसके बावजूद
कुछ बावडियों के अंदर तक जाती हैं र्सीिढ़यां
जिनमें भले ही कोई उतरना नहीं चाहता आज

शोर का अतिक्रमण
अब मौन पर भारी है और
तपस्या-ध्यान का संतोष
कपूर की तरह अदृश्य हो चुका है

इसके बावजूद
मंत्र की तरह लिखी जा रही है कविताएं
इस बात का यकीन रखो

तात्कालिकता शाश्वत मूल्यों को
ध्वस्त किए जा रही है
जिसे सहमति दे रहे हैं उस्ताद और पंडित

इसके बावजूद
कट रही है रंगीन पतंगों की डोर
आपस में ही टकरा जाने से
शांत नीले आसमान के तले।
</poem>
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