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कमाल की औरतें ७ / शैलजा पाठक

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<poem>ये औरतें
ससुराल आते ही दर्ज हो जाती हैं
राशन कार्ड पर मुस्कराती सी

अब ƒघर में ’ज्यादा शक्कर आता है
महीने में कुछ ’ज्यादा गेहूं
इनके जने बच्चों के भी नाम दर्ज होते हैं फटाफट
ये कार्ड में संख्या बढ़ाती हैं

और अपने ही नाम पर मिले मिट्टी के तेल से
एकदम अचानक ही भभक कर जल जाती हैं
इनके बाल झुलसे
आंखें खुलीं
देह राख हो जाती हैं
रसोई में बिखरी होती है
इनके हिस्से की चीनी
जो गर्म नदी में तब्दील हो जाती है
चुप हो जाती हैं इनकी चूडिय़ां

बस राशन कार्ड पर
एक और बार ये
एक नये नाम से दर्ज हो जाती हैं
ये कमाल की औरतें
फिर एक बार
अपने नाम पर मिट्टी का तेल लाती हैं।
</poem>
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