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कमाल की औरतें १७ / शैलजा पाठक

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<poem>ऐ लड़की!
खाना बना
बिस्तर लगा
पानी पिला
कपड़े धो
बर्तन मांज
ओढऩी ओढ़
आवाज़ नीची
नजर नीची
हंस मत
बाहर मत जा
पर्दा लगा

पिंजरे में बंद तोता
बेचैन होता है
प्याली भर पानी में अपनी चोंच धोता है
उसकी लाल-गोल आंखों में आग है

उसके पंख में आसमानी ख्वाब है
लड़की एक इंकलाबी गाना गाती है
ƒघर के दरवाज़े और सख्ती से बंद हो जाते हैं
लड़की तोते की और देख कर मुस्कराती है
अपने हक की लड़ाई की पहली आवाज़ पर
चरमरा जाती है पुरानी बेढब धारणाएं

लड़की प्रेम करेगी...पहाड़ चढ़ेगी
आंधियों से टकराएगी अपने हिस्से का जिएगी
अपने होने का परचम लहराएगी

लड़की अपनी ज़िन्दगी की जंग
अपने बल पर जीत जायेगी
तोता आकाश में है अब
पिंजरा खाली तेज़ चक्कर काटता
टूटा पड़ा है जमीन पर।</poem>
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