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जनाब हो तुम / कमलेश द्विवेदी

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<poem>हमारे दिल की किताब हो तुम.
सवाल हो तुम जवाब हो तुम.

है सँग तुम्हारा सुकूँ हमारा,
हमारी नींदें हो ख़्वाब हो तुम.

तुम्हारी खुशबू है फैली हर सू,
हो रातरानी गुलाब हो तुम.

जो तुमको जाने वो हमको माने,
हमारी हस्ती-रुआब हो तुम.

बचेगा कैसे कोई नशे से,
तुम्हीं ही साकी शराब हो तुम.

करीब आओ सितम न ढाओ,
हुज़ूर हो तुम जनाब हो तुम.
</poem>
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