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{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>गली आपकी है डगर आपकी है.
चले कोई मर्जी मगर आपकी है.
कहे कोई कैसे वो कागज़ गलत है,
लगी जिसपे साहब मुहर आपकी है.
जो मर्जी से अपनी बहाओ तो जाने,
नदी आपकी है लहर आपकी है.
वो सच्ची या झूठी है खुद ही बतायें,
जो अखबार में है खबर आपकी है.
कोई खूबसूरत है कोई नहीं है,
ये सच पूछिये तो नजर आपकी है.
मुहब्बत में हालत इधर जो हमारी,
बताओ हमें क्या उधर आपकी है?
भले ही गजल तो ये हमने कही है,
जमीं आपकी है बहर आपकी है.
</poem>
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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>गली आपकी है डगर आपकी है.
चले कोई मर्जी मगर आपकी है.
कहे कोई कैसे वो कागज़ गलत है,
लगी जिसपे साहब मुहर आपकी है.
जो मर्जी से अपनी बहाओ तो जाने,
नदी आपकी है लहर आपकी है.
वो सच्ची या झूठी है खुद ही बतायें,
जो अखबार में है खबर आपकी है.
कोई खूबसूरत है कोई नहीं है,
ये सच पूछिये तो नजर आपकी है.
मुहब्बत में हालत इधर जो हमारी,
बताओ हमें क्या उधर आपकी है?
भले ही गजल तो ये हमने कही है,
जमीं आपकी है बहर आपकी है.
</poem>