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|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
|संग्रह=
}}
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<poem>
''' दौड़ '''
एक समय था जब
खुद से पीछे छूट जाने के भय से
दौड़ते रहते थे हम
और जब मिलते थे खुद से
खिल उठते थे
चांदनी रात में चांद की तरह
अंतस में
झरने लगता था मधु
अब आगे निकल गए
दूसरों के पीछे दौड़ते रहते हैं
इस तरह खुद से इतना दूर
निकल जाते हैं कि
जीवनभर हाँफते रहते हैं
और अमावस की स्याही
टपकती रहती है
अंतस की झील में ।
</poem>
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''' दौड़ '''
एक समय था जब
खुद से पीछे छूट जाने के भय से
दौड़ते रहते थे हम
और जब मिलते थे खुद से
खिल उठते थे
चांदनी रात में चांद की तरह
अंतस में
झरने लगता था मधु
अब आगे निकल गए
दूसरों के पीछे दौड़ते रहते हैं
इस तरह खुद से इतना दूर
निकल जाते हैं कि
जीवनभर हाँफते रहते हैं
और अमावस की स्याही
टपकती रहती है
अंतस की झील में ।
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