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नींद / प्रदीप मिश्र

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''' नींद '''
 
 
नींद उस बच्चे की
जिसे परियाँ खिला रहीं हैं
मुस्कान उसके चेहरे पर
सुबह की किरणों की तरह खिली हुई हैं
नींद उस नौजवान नौज़वान की
जिसकी आँखों में करवट बदल रही है
एक सूखती हुई नदी
नींद उस किसान की
जो रात भर
बिवाई की तरह फटे खेतों में
हल जोतकर लौटा है अभी
जिसकी आँखों में
एक भूतहा खण्डहर बचा है
खण्डहर की ईंटों की रखवाली जिसकी चौकीदारी में
वह रातभर खाँसता रहता है
किसिम-किसिम की होती है नींद
हर नींद के बाद जागना होता है
 
जिस नींद के बाद
जागने की गुँजाईश गुज़ँईश नहीं होती है
वह मौत होती है।
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