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जब भी कोई जाता
बेटियों की डोली
वह घर की औरतों से
जब भी जन्मते घर में बच्चे
गर्व से फैलकर
अपने अन्दर जगह ज़गह बनाता
उनके लिए भी
उत्सवों और सुअवसरों पर
इतना प्रसन्न होता कि
ढह रहा है घर
घर विस्थापित हो रहा है ।है।
''' दो - छूटा हुआ जूता '''
सुनसान सडक़ पर छूटा हुआ है
एक पैर का जूता
उसे इन्तज़ार है
हमसफ़र पाँव का
जिसके साथ
टहलने जाना चाहता है
पान की दूकान दूक़ान तक
एक किनारे औंधा पड़ा हुक्का
सुगबुगा रहा है
कोई आकर उसे गुड़गुड़ाएगुडग़ुड़ाए
तो वह फिर जी जाएगा
भर देगा रग-रग में तरंग
ठण्डा पड़ रहा है चूल्हापड़ा चुल्हा
खेतों में खटकर लौटी भूख
को देखकर जल उठेगा
नीला पड़ रहा है
उसे लटकने के लिए
उसे बना देगा कर्णधार
और दरवाज़ों की ओट में पल्लवित प्रेम
विस्थापित हो रहा है
अभी भी मिल जाएँ जाऐं आतुर निगाहें तोवे फिर रच देंगे हीर-राँझाराँझां
नीम की छाँव में
धूप के चकत्तों चिलकों का आकार बढ़ता जा रहा है
खेतों के गर्भ में
बहुत सारी उर्वरा खदबदा रही है
एक दिन इन सब पर
फिर जाएगा पानी
इस पानी से बनेगी बिजलीबिज़ली
जो दौड़ेगी
नगर-नगर,गाँव-गाँव
चारो तरफ विकास ही विकास होगा
एक दिन विकसित समाज में
कोई दबाएगा बिजली बिज़ली का खटका तोउसकी बत्ती से रौशनी रोशनी की जगह
विस्थापितों के जूते बरसेंगे
जो पुलिस के डंडे की डर
से छूट छुट गए थे सड़क पर
कोई टेबल लैम्प जलाएगाज़लाएगा
पढ़ने के लिए
उसके सामने फैल फ़ैल जाएगी
बस्ते की स्याही
जो खूँटी पर टँगा छूट गया था
कोई कम्प्यूटर का खटका दबाएगा
तो उसके कम्प्यूटर कम्प्युटर के स्क्रीन पर
उभरेगा मरणासन्न हुक्का
पूछेगा कहाँ गए वो लोग
जो मुझे गुड़गुड़ाते गुडग़ुड़ाते थे
कोई हीटर का खटका दबाएगा
तो हीटर पर रखी केतली में
उन चूल्हों के ख़ूनभरे आँसू उबलेंगे
जिनकी आग पानी में डूब गईगयी
खेतों के गर्भ में खदबदाने के लिए
सड़ रही होंगी जड़ें
फिर दबाते रहिए बिजली बिज़ली के खटकेगाड़ते जाएँ जाएं विकास के झण्डे
वहाँ कुछ नहीं बचेगा
जीवन जैसा ।
बढ़ रहा है नदी में पानी
चढ़ रहा है गाँव पर
कसमसा रहे है खेत
वर्षों पैदा किया अनाज
अब जम जाएगी उन पर काई
या उनके अंदर बची हुई जड़ें
हो जाएगा जीना मुहाल
मर जाऐंगे खेत
अपनी टहनियों को ऊपर उठाए
चिल्ला रहा है
अरे आओ रे आओ
बचाओ कोई
अभी मेरे जि़म्में बहुत सारी मन्नतें हैं
जिनको पूरा करना है
अपनी छाया में खेलते-कूदते बच्चों को
न रो रहा है
न बचाव के लिए चिल्ला रहा है
गल रहीं हैं उसकी दीवारें
चढ़ रहा है नदी का पानीघर जल समाधि लगा रहा है देखते-देखते ही दखते डूब गया हरसूद
हाथियों नीचे पानी में
और पानी की सतह पर
एक स्लेट तैर रही है
जिसपर लिखा है कखग।क ख ग।
एक बार फैली थी महामारी
पूरा गाँव खाली हो गया था
बहुत भयानक भूकम्प
धरती ऐसी काँपी थी कि
एक बार गाँव के बीचो-बीच
फूट पड़ा था ज्वालामुखी
जलकर राख़ राख हो गए थे
गाँव के बाग-बगीचे तक
एक बार आया था प्रलय
ऐसा महाप्रलय कि
उसमें समा गया था पूरा गाँव
न ज्वालामुखी से उमड़ा आग का दरिया
न ही हुआ प्रलय का महाविनाशक तांडवताण्डव
फिर भी डूब गया एक गाँव हरसूद
पकिस्तान से विस्थापित होकर
अपने देश में भी विस्थापित
होता रहा बार-बार
हर बार तोड़ी एक गृहस्थी
हर बार जोड़ी एक गृहस्थी
कमतर ही रही
अब फिर अस्सी वर्ष की उम्र में
अस्सी वर्ष की उम्र में
मुझे सरकार ने दिया है
बहुत सारा मुआवज़ामुवावज़ा
मैं आजकल रूपये
ओढ़-बिछा रहा हूँ
सौ-सौ के नोट
लेकिन कम्बख़्त भूख भूख़ है कि मिटती नहीं
नोटों के गद्दे पर वो नींद नहीं आती
जो कर्ज़ में गले तक डूबे रहने के बाद भी
डूबकर मरने के लिए
मेरी सुहाग की चूड़ियाँचूडिय़ाँलोकगीतों लोक गीतों की डायरी
रंगोली के रंग
चौक पूरने का सामान
तुलसी का चौरा
सखी-सहेलियाँ
सबकुछ छूट गया हरसूद में
हरसूद डूब गया
या मैं भी डूब गयी
हरसूद के साथ
कौन बताएगा मुझे
विकास मनुष्य को बेहतर जीवन देता है
विषय पर लेख लिखने के लिए
मैंने बहुत अच्छा लेख लिखा है
लेकिन मेरी पाठशाला और मास्टर जी मास्टरजी दोनो दोनों छूट गए हरसूद मेंअब मैं क्या करूँ इस लेख का क्या करूँ विकास की क़ीमत इतनी ज़्यादा होती हैतो क्या बुरा है अविकसित रहना ।का।
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