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|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
|संग्रह=
}}
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<poem>
''' ऋतुओं का राजा बसन्त '''
(मराठी कवि बसन्त राशिनकर के लिए)
ठहरो पृथ्वी
ठहरो ऋतुओं
ठहरो हवाओं
ठहरो और
इस रचनाकार से मिलकर जाओ
यह ऋतुओं का राजा बसन्त है
इसके बिना अधूरी है
तुम्हारी सारी सुन्दरता
सृजन तो असम्भव
यह बसन्त है
जिसके माथे पर खिले हुए हैं दहकते विचार
और इसकी मदमाती हवाओं में
भीनी हुई हैं पनीली भावनाऐं
जब वह झरता है
धरती पर
चुपके से सारे ग्रह-नक्षत्र समा जाते हैं
धरती के गर्भ में
जिनके अंकुरण के साथ-साथ
नए-नए ब्रह्माण्ड फोड़ते हैं कोंपल
नए-नए ब्रह्माण्ड रचनेवाला रचनाकार बसन्त
हमारे हृदय में कुलांचे भर रहा है
प्रेम हमारे फेफड़ों में भर रहा है
आक्सीजन बनकर
बिन बोले ही
सुन रहीं हैं प्रेमिकाऐं
दिलों की आवाज़
कुछ रचने को बेचैन हैं दिल
बसन्त आ गया है
अन्दर और बाहर।
</poem>
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|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
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''' ऋतुओं का राजा बसन्त '''
(मराठी कवि बसन्त राशिनकर के लिए)
ठहरो पृथ्वी
ठहरो ऋतुओं
ठहरो हवाओं
ठहरो और
इस रचनाकार से मिलकर जाओ
यह ऋतुओं का राजा बसन्त है
इसके बिना अधूरी है
तुम्हारी सारी सुन्दरता
सृजन तो असम्भव
यह बसन्त है
जिसके माथे पर खिले हुए हैं दहकते विचार
और इसकी मदमाती हवाओं में
भीनी हुई हैं पनीली भावनाऐं
जब वह झरता है
धरती पर
चुपके से सारे ग्रह-नक्षत्र समा जाते हैं
धरती के गर्भ में
जिनके अंकुरण के साथ-साथ
नए-नए ब्रह्माण्ड फोड़ते हैं कोंपल
नए-नए ब्रह्माण्ड रचनेवाला रचनाकार बसन्त
हमारे हृदय में कुलांचे भर रहा है
प्रेम हमारे फेफड़ों में भर रहा है
आक्सीजन बनकर
बिन बोले ही
सुन रहीं हैं प्रेमिकाऐं
दिलों की आवाज़
कुछ रचने को बेचैन हैं दिल
बसन्त आ गया है
अन्दर और बाहर।
</poem>