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|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
|संग्रह=
}}
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<poem>
''' आओ वक्रतुंड '''
आओ
वक्रतुंड महाकाय
विराजो हमारे आंगन
तुम्हारी रिद्धी-सिद्धी को भी साथ लाना
न भूलना
न भूलना कि
हम दलित-दमित असहाय
बैठे हैं आपके चरणों में
अपनी फरियाद लेकर
आओ और मिटा दो वैमनस्यता
आओ और मिटा दो अपराध
आओ और मिटा दो शोषण
आओ और मोदक का भेंट स्वीकार करो
मीठा कर दो हमारा जीवन
आओ और फिर कभी न जाने के लिए आओ
मंगलमूर्ति
मेरी प्रार्थना पूरी हो गयी,
यह मेरी अनुवांशिक कमज़ोरी है
इसलिए करता रहता हूँ तुम्हारी प्रार्थना
प्रार्थना तो मुहल्ले के गुंडे से भी करता हूँ
अन्यथा घर बदर हो जाऊँगा
दिनभर कहीं न कहीं किसी न किसी से
करता रहता हूँ प्रार्थना
प्रार्थना करो और विनम्र बने रहो
हमारे समय के इस भ्रम वाक्य ने
बहुत सारे ईश्वरों को पैदा कर दिया है
इतने सारे ईश्वरों को भेंट चढ़ाते
और प्रार्थना करते-करते
हमारी कमर टूट गयी है
हम अपनी टूटी कमर और
पिलपिली रीढ़ के साथ
आपकी प्रार्थऩा कर रहे हैं
आओ वक्रतुंड महाकाय कृपा करो ।
</poem>
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''' आओ वक्रतुंड '''
आओ
वक्रतुंड महाकाय
विराजो हमारे आंगन
तुम्हारी रिद्धी-सिद्धी को भी साथ लाना
न भूलना
न भूलना कि
हम दलित-दमित असहाय
बैठे हैं आपके चरणों में
अपनी फरियाद लेकर
आओ और मिटा दो वैमनस्यता
आओ और मिटा दो अपराध
आओ और मिटा दो शोषण
आओ और मोदक का भेंट स्वीकार करो
मीठा कर दो हमारा जीवन
आओ और फिर कभी न जाने के लिए आओ
मंगलमूर्ति
मेरी प्रार्थना पूरी हो गयी,
यह मेरी अनुवांशिक कमज़ोरी है
इसलिए करता रहता हूँ तुम्हारी प्रार्थना
प्रार्थना तो मुहल्ले के गुंडे से भी करता हूँ
अन्यथा घर बदर हो जाऊँगा
दिनभर कहीं न कहीं किसी न किसी से
करता रहता हूँ प्रार्थना
प्रार्थना करो और विनम्र बने रहो
हमारे समय के इस भ्रम वाक्य ने
बहुत सारे ईश्वरों को पैदा कर दिया है
इतने सारे ईश्वरों को भेंट चढ़ाते
और प्रार्थना करते-करते
हमारी कमर टूट गयी है
हम अपनी टूटी कमर और
पिलपिली रीढ़ के साथ
आपकी प्रार्थऩा कर रहे हैं
आओ वक्रतुंड महाकाय कृपा करो ।
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