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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
बरसां बाद
गयो मेळै।

मिठाई-खिलौणा
गाभा-जूता
सीडी-मोबाइल
बैंक-बीमा, प्रापर्टी री
मोकळी ही दुकानां
अर बेथाग ही भीड़
पण मेळो कोनीं हो।

मेळा नैं
खाग्यो बजार।
</poem>
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