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|रचनाकार=देवकी दर्पण ‘रसराज’
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
जादा मत उफणै
दूसरा का ताव सूं
ये खाली
झागड़ा ही झागड़ा छै
होस में आ
फेर भी तो
समट’र
पींदा में आवगो।
</poem>
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