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{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन सोनी ‘चक्र’
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
हिवड़ै मांय
खावतो भचीड़
वो कोई एक ऐसास
जकै नैं
मांडणो अबखो
अर सुणावणो तो
वीं सूं ई अबखो।
</poem>
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