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सनेसो / गीता सामौर

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|रचनाकार=गीता सामौर
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
मां री कूख
आयोड़ो जीव
आ कद सोची ही
कै कन्या होवणो
भोत बडो अपराध है....।
पण आज
जद तथाकथित आधुनिक माईत
सोनाग्राफी करा’र
कन्या है
आ ठाह पड़्यां पछै
उणनैं मारण नै त्यार होयग्या
जणां उण जीव
दुनिया रा सगळा जीवां नैं
आपरो सनेसो दियो-
‘हे दुनियां रा जीवां
अर देवतावां!
इण कळजुग मांय
जे थे चावो हो
धरती पर आवणो
तो थांनै लेणी पड़सी सरण-
माछली / वराह
का फेर कच्छप रै
भेख मांय जलमण री।’
क्यूं कै मिनखा-देही मांय
देवतावां नैं जलम देवै
बिसी मां अबै कठै.....?
</poem>
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