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मसीनी जुग / गीता सामौर

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|रचनाकार=गीता सामौर
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<poem>
आजकाल
जद लोगां सूं सुणूं-
‘मसीनी जुग आयग्यो है,
अबै मिनख रा काम मसीन करैली।’
तद सोचूं-
कांई अबै मिनखां रो जमानो गयो
अर मसीनां रो जमानो आयग्यो?
स्यात जणै ई अबै मानखो
दिनूगै सूं लेय’र सिंझ्या तांई
अर जलम सूं लेय’र मरण तांई
मसीन बण्यो भाज्यो फिरै....।
</poem>
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