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ओट / विनोद स्वामी

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|रचनाकार=विनोद स्वामी
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
कितणो निबळो है
ईं नवी हेली रो अंतस
निजर सूं बचण सारू
एक काळी हांडकी री
ओट लियां खड़ी है।
</poem>
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