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|रचनाकार=मनोज पुरोहित ‘अनंत’
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
होठां सूं निकळ
कानां तांई पूगी
कानां रै बाद
कठै गमगी कविता!

निरा सबद नीं है
म्हारी कविता
भीतर री लाय है
बळत है बरसां री
हाय है
मजूरां री-करसां री।

सोनल सुपना
रमै सबदां में
सबद उचारै राग
सुळगावै आग
जद रचीजै-कथीजै
कोई कविता

आव कविता बांच
मिलसी वा ई आंच ।
</poem>
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