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तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का<br><br>
यह एैश ऐश के नहीं हैं याँ या रंग और कुछ है<br>
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का<br><br>
बुलबुल ग़ज़ल सराई, आगे हमारे मत कर<br>
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का