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होने का सागर / अज्ञेय

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सागर जो गाता है <br>
वह अर्थ से परे है-- है— <br>वह जो तो अर्थ को टेर रहा है। <br> <br>
हमारा ज्ञान जहाँ तक जाता है, <br>
वह सागर में नहीं, <br>
हमारी मछली में है <br>
जिस जिसे सभी दिशा में <br>
सागर घेर रहा है। <br> <br>
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