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प्रार्थना - 1 / प्रेमघन

No change in size, 07:14, 2 फ़रवरी 2016
::सुनि जाहि रसिक मुदित नाचै मोर मन।
बरसत सुखद सुजस रावरे को रहै,
::कृपा वारि पूरित सदा ही यह प्रेमधन॥प्रेमघन॥
</poem>
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