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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
उनका एक बयान हुआ
दंगे का सामान हुआ
क़ातिल का जब भेद खुला
हाकिम मेहरबान हुआ
कोना-कोना चमके घर
वो जबसे मेहमान हुआ
बस्ती ही तो एक जली
ऐसा क्या तूफ़ान हुआ ?
प्यास बुझी जब सूरज की
दरिया इक मैदान हुआ
उनका एक इशारा भी
रब का ज्यूँ फ़रमान हुआ
जब से हरी वर्दी पहनी
ये दिल हिन्दुस्तान हुआ
(मासिक कथादेश-जून 2011, त्रैमासिक नई ग़ज़ल-जनवरी 2011)
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उनका एक बयान हुआ
दंगे का सामान हुआ
क़ातिल का जब भेद खुला
हाकिम मेहरबान हुआ
कोना-कोना चमके घर
वो जबसे मेहमान हुआ
बस्ती ही तो एक जली
ऐसा क्या तूफ़ान हुआ ?
प्यास बुझी जब सूरज की
दरिया इक मैदान हुआ
उनका एक इशारा भी
रब का ज्यूँ फ़रमान हुआ
जब से हरी वर्दी पहनी
ये दिल हिन्दुस्तान हुआ
(मासिक कथादेश-जून 2011, त्रैमासिक नई ग़ज़ल-जनवरी 2011)