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|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
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जाने वालों से राब्ता रखना
 
दोस्तो रस्म-ए-फातिहा रखना
 
घर की तामीर चाहे जैसी हो
 
इसमें रोने की कुछ जगह रखना
 
मस्जिदें हैं नमाजियों के लिए
 
अपने घर में कहीं खुदा रखना
 
जिस्म में फैलने लगा है शहर
 
अपनी तन्हाईयाँ बचा रखना
 
उमर करने को है पचास को पार
 
कौन है किस जगह पता रखना
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