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मुँह की बात / निदा फ़ाज़ली

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|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
}}
{{KKCatGeet}}<poem>मुँह की बात सुने हर कोई<br>दिल के दर्द को जाने कौन<br>आवाज़ों के बाज़ारों में<br>ख़ामोशी पहचाने कौन ।<br><br>कौन।
सदियों-सदियों वही तमाशा<br>रस्ता-रस्ता लम्बी खोज<br>लेकिन जब हम मिल जाते हैं<br>खो जाता है जाने कौन ।<br><br>कौन।
जाने क्या-क्या बोल रहा था<br>सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून<br>कल मेरी नींदों में छुपकर<br>जाग रहा था जाने कौन ।<br><br>कौन।
मैं उसकी परछाई हूँ या<br>वो मेरा आईना है<br>मेरे ही घर में रहता है<br>मेरे जैसा जाने कौन ।<br><br>कौन।
किरन-किरन अलसाता सूरज<br>पलक-पलक खुलती नींदें<br>धीमे-धीमे बिखर रहा है<br>ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन ।<br>कौन।<br/poem>
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