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|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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<poem>
उकसाने पर हवा के आँधी से भिड़ गया है
मेरे चराग़ का भी मुझ-सा ही हौसला है

रातों को जागता मैं, सोता नहीं है तू भी
तेरा शगल है, मेरा तो काम जागना है

साहिल पे दबदबा है माना तेरा ही तेरा
लेकिन मेरा तो रिश्ता, दरिया से प्यास का है

कब तक दबाये मुझको रक्खेगा हाशिये पर
मेरे वजूद से ही तेरा ये फ़लसफ़ा है

अम्बर की साजिशों पर हर सिम्त ख़ामुशी थी
धरती की एक उफ़ पर क्यूँ आया ज़लज़ला है

मेरी शहादतों पर इक चीख़ तक न उट्ठे
तेरी खरोंच पर भी चर्चा हुआ हुआ है

तेरे ही आने वाले महफ़ूज 'कल' की ख़ातिर
मैंने तो हाय अपना ये 'आज' दे दिया है





(मासिक समावर्तन, जुलाई 2014 "रेखांकित")
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