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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
नीली है, गुलाबी है, ये धानी है कहानी
सब रंग हैं जिसमें, वो सुनानी है कहानी
है सख़्त हिदायत कि कोई नाम न आये
इक सच की हमें झूठी बनानी है कहानी
उतरेंगे मुखौटे सभी, जो खुल के कहा तो
ये सिर्फ इशारे में निभानी है कहानी
ढ़ह जाये न मीनार बुलंदी की यहाँ सब
बस हाय ! इसी डर से छुपानी है कहानी
होठों पे अगर खौफ़ के ताले भी हैं, तो क्या
बेबस सही, आँखों की ज़ुबानी है कहानी
हर रोज़ ही देते हो हवाले इसी से तुम
फिर ऐंठ के कहते हो पुरानी है कहानी
लगती हो तुम्हें बात लड़कपन की ये, बेशक
जो ग़ौर से सुन लो, तो सयानी है कहानी
(कथाक्रम जनवरी-मार्च 2014, समावर्तन सितम्बर 2013)
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|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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नीली है, गुलाबी है, ये धानी है कहानी
सब रंग हैं जिसमें, वो सुनानी है कहानी
है सख़्त हिदायत कि कोई नाम न आये
इक सच की हमें झूठी बनानी है कहानी
उतरेंगे मुखौटे सभी, जो खुल के कहा तो
ये सिर्फ इशारे में निभानी है कहानी
ढ़ह जाये न मीनार बुलंदी की यहाँ सब
बस हाय ! इसी डर से छुपानी है कहानी
होठों पे अगर खौफ़ के ताले भी हैं, तो क्या
बेबस सही, आँखों की ज़ुबानी है कहानी
हर रोज़ ही देते हो हवाले इसी से तुम
फिर ऐंठ के कहते हो पुरानी है कहानी
लगती हो तुम्हें बात लड़कपन की ये, बेशक
जो ग़ौर से सुन लो, तो सयानी है कहानी
(कथाक्रम जनवरी-मार्च 2014, समावर्तन सितम्बर 2013)