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पावस - 13 / प्रेमघन

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::लौं झरि बुन्दन की बरसावत॥
देखिये तो घन प्रेम भरे,
::प्रजा पुंज से मोर हैं सोर मचावत।
आज जहाज चढ़े महराज,
::मनोज मनो घन पैं चढ़े आवत॥
</poem>
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