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पावस - 13 / प्रेमघन
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07:26, 22 फ़रवरी 2016
::लौं झरि बुन्दन की बरसावत॥
देखिये तो घन प्रेम भरे,
::
प्रजा पुंज से मोर हैं सोर मचावत।
आज जहाज चढ़े महराज,
::मनोज मनो घन पैं चढ़े आवत॥
</poem>
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