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पावस - 14 / प्रेमघन

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::चितवन हूँ को न मिलत अवकास है॥
प्रेमघन घन की घटा है घोर घहरात,
::घरता घहरात बूँदैं उपजाय उर त्रास है।
पी कहाँ पपीहा साँची कहन भटू है अब,
::परदेसी पिय की न आवन की आस है॥
</poem>
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