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जाने किस जीवन की सुधि ले
लहराती आती मधु-बयार!
 
 
रंजित कर ले यह शिथिल चरण, ले नव अशोक का अरुण राग,
 
मेरे मण्डन को आज मधुर, ला रजनीगन्धा का पराग;
 
यूथी की मीलित कलियों से
 
अलि, दे मेरी कबरी सँवार।
 
पाटल के सुरभित रंगों से रँग दे हिम-सा उज्जवल दुकूल,
 
गूँथ दे रशमा में अलि-गुंजन से पूरित झरते बकुल-फूल;
 
रजनी से अंजन माँग सजनि,
 
दे मेरे अलसित नयन सार !
 
तारक-लोचन से सींच सींच नभ करता रज को विरज आज,
 
बरसाता पथ में हरसिंगार केशर से चर्चित सुमन-लाज;
 
कंटकित रसालों पर उठता
 
है पागल पिक मुझको पुकार!
 
लहराती आती मधु-बयार !!
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