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Kavita Kosh से
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हमारे पीठ पीछे आ चुका है चंद्रमा
एक.-दूसरे पर झुके
हम दो देवदारों के मध्य
अब छायाएं हैं हम
लिपटे एक.-दूसरे से
शून्य को चूमती
छायाएं केवल।
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