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दाबि के रखले’ रखलेॅ जे तरबा तर, जिनगी भरि मन बहलाबै ले’
बाबूसाहेब केना कहै छ’, अब ऊ तरबा सहलाबै ले’
हम्मर फूस के घ’र जराय के, रहि रहलै जे बहुमंजिला में
ऊ मंजिल मे केना कहै छ’ छॅ हमरा दिया जराबै ले’
दसो निशान छै हमरा अंगुरी के, बाबूसाहेब! जै रोटी पर
ऊ रोटी पर केना कहै छ’ छॅ भुक्खल लोर बहाबै ले’
सिंघ पकड़ि के जे बरदा के, अपने हाथ मरखाह बनैले’
ऊ बरदा के केना कहै छ’ छॅ मालिक नाथ पिन्हाबै ले’
थाना कोट कचहरी अफसर, जे सरकार निकम्मी भेलै