{{KKCatAngikaRachna}}
<poem>
पराधीन भारत मेॅ बापू दिव्य एक संदेश महान,जनकर-जन केॅ जोड़ै के खातिर, दै देलकै प्राणोॅ के दान ।विद्रोह
अंग्रेजोॅ के राजोॅ मेॅ हौ भारत कत्तेॅ बेवश दीनऊ घोर तमस,ऊ अंधियाला में कहीं उजाला तक नै झलकैशिक्षा दीक्षाओं सेॅ ही नैजों काहूं कुछ दिखै अगर तेॅ, निर्धनतौ सेॅ बड़ा अंग्रेजोॅ के मलीन मलका मलकै ।
ई ऊ निर्धनता केॅ मलका तोड़ै हेने लेॅ बापू ही छेलै जै मेॅ मान सभे के हौ अद्भुत खोजफँसलोॅ,जे फाँसी के रस्सा में गौरव सेॅ भरलोॅ छेलै, देशप्रेम सेॅ लब लब ओज जेना लाखो के गरदन टा कसलोॅ ।
हर जो लगान खेतिहर लोगोॅ पर, तेॅ नमकोॅ घर पर में होने खादी के चर्चा, हर घर में चरखा के राजही कर,निर्धन के माथा पर भारत जेना सोना-मोती केरोॅ अर्थ व्यवस्था गोड़ोॅ सेॅ मूड़ी तक ताज जर्जर ।
अपनोॅ रोजी, अपनोॅ रोटी, हर गृह हाथोॅ उद्योग रसातल केॅ जी भर काममेॅ तेॅ, यंत्रा सिनी के मौज चलै,खादी भारत केरोॅ होतै भाग्य बुढ़न्ती भाग्य सबके देह पर, सुन्दर कपड़ा विदेशी के सस्ता दाम मचलै ।
बड़ोॅ गाँधी जी मील केॅ के रोकै मोॅन लेलीदुखोॅ से पर्वत नाँखी भारी-भारी, एक यही की उपाय तेॅ हेनोॅ बचै उपाय,बड़ोॅ मील बचलोॅ छै जे लघु धन्धा पर बनते रहलै क्रूर कसाय चिन्ता सेॅ रखेॅ उबारी ।
भारी कल पुर्जा तेॅ दुश्मन लघु खून धन्धा खराबी के सेॅ होतै छैपाना ई व्यर्थ, अपावन, कुस्सित छेलै,हेनोॅ जहाँ व्यवस्था होतै, लघु विनयी बनी अवज्ञा करवोॅ यही जन पंथ वैठां तेॅ रोतै अच्छा छै भेलै ।
जांे चरखा ठो पूर्ण स्वराजोॅ के माँगोॅ केॅ घर-घर होतै, जांे खादी में पहुँचाना के चलतै कामछेलै,तेॅ बापू समझोॅ के निर्धन के घर मन में एक साथ तखनी ही ई विचार ठो छै चारो धाम अद्भुत ऐलै ।
तबेॅ सबसेॅ पहलेॅ कथी नमक लेॅ करोॅ केॅ नै सरकारोॅ पर निर्भर देना रहतै छै निर्धन लोगकेकरौ आबेॅ,ई स्वराज के ऐला सेॅ तेॅ मिटनै सरकारोॅ लुग झुकना नै छै सब घर के सोग , कत्तो नी वैं जोर लगाबेॅ ।
स्वाभिमान के सब भाव उपजतै स्वअवलम्बन केरोॅ भावसोचै की होतै यै सेॅ,स्वदेशी भावोॅ नमक करोॅ केॅ नै देला सेॅ ,पूर्ण स्वराज भला की ऐतै गाँधीजी जुड़तै जन के जन ई खेला सेॅ नया जुड़ाव ।
बापू पर तोरोॅ सोच देखलकै सब्भै दिव्य हौ नया सब गाँधी रोशनी के आँधी के सेॅ भरपूरजोर,खादी चरखा के गति देखी नीति विदेशी टापे चकनाचूर टुप अन्हरिया में हौ झकझक-झकझक भोर इंजोर ।
दान देश दहेजोॅ भरी तक में चरखा उत्सव पर खादी मेॅ नमक क्रांति हौ बिन्डोवे रं बढ़लोॅ गेलै,अंग्रेजोॅ के मान हाल वहा रं,गाँधी तोरोॅ राजोॅ बोहोॅ मेॅ जों हौ स्वदेशी के सुरुलय, लकड़ी तान हेलै ।
एक अकेले बिन हिंसा के क्रांति बापू के जे रं उधियैलै खादी-चरखा अंग्रेजोॅ देशोॅ ले मेॅ,जे काल रं समानकि नद्दी उफनावै भरलोॅ सावन के शेषोॅ में । बापू के दाण्डी यात्रा सेॅ बिना करे के नमक उठैवोॅ,गाँधी तोरोॅ की राजोॅ उद्देश्य ? यही तेॅ छेलै अंग्रेजोॅ के डोॅर भगैवोॅ । आत्मबलोॅ केॅ जन-जन मन मेॅ , जड़ता केॅ तोड़ी हौकेॅ भरवोॅ, स्वदेशी दांडी यात्रा के मकसद तेॅ, सुतलोॅ सबकेॅ जागृत करवोॅ । जागी पड़लै देश समूचा, अंग्रेजोॅ के नींव हिलैलेॅअत्याचार सुर लयसही केॅ सबटा, सत्याग्रह के तान पर्व निभैलेॅ ।
सबके मन में भाव देश के, जागै छेलै एक समान,
गाँधी तोरोॅ राजोॅ में हौ स्वदेशी के सुरु लय, तान ।
</poem>