{{KKCatAngikaRachna}}
<poem>
भारत जे मालवीय मुक्ति के बी. एच. यू. के, नींव मानसमहोत्सव के हौ रंग,राजा-रजबाड़ा के हाकिम, वहीं जैमेॅ अन्हरिया कि टापे अंग्रेजो टुप,मुक्ति लेली तरसै भारत दुबड़ी-पर्वत चुप-चुप-चुप संग ।
अंग्रेजोॅ के राज सबने सब अमावशकुछ बहुत कहलकै, जीवन पर गाँधी के बात जुगनू रं भुक-भुकअलग,जे भारत प्राणोॅ सुनी-सुनी के मालिक, ओकरे प्राण ठो हुक राजा-हुकरैयत, होवेॅ लागलै अलग-हुक।थलग ।
साल पर गाँधी के अठारह राष्ट्र प्रेम के सुर सौ उनहत्तर, अक्टूबर उठलै के तेॅ दोसरोॅ दिनठठले गेलै,जागी उठलै अन्धकार पर एक किरण कण गिनचकित अतिथि भीतरे-गिन-गिन।भीतर, माननीयो आतंकित छेलै ।
पोरबन्दर पर भारत मेॅ उतरी अंग्रेजी ऐलैसत्ता, भारत के केरोॅ खुललै भाग्य सब विमलचाल,के जानै आरो एकरोॅ शासन छेलै मेॅ, की छै ई तखनी यहा बरसतै भारत के होय बादल हाल ।
पढ़ी-लिखी परदेशोॅ की छै मेॅ जे लौटी ऐलै घरराजा-स्वदेशधनपतियो के, हीन-दीन करतूत,ओकरोॅ आँखी मेॅ नाँचै बसशासन आगू चुप हेनोॅ ज्यों, भारत केरोॅ दुखिया भेष बच्चा देखेॅ भूत ।
सब कुछ छोड़ी छाड़ी की नै योगीकहलकै गाँधी जी नेॅ, स्वदेशोॅ के दोषी कामोॅ ठो लेॅबचलै ?केकरो तेॅ अच्छा ही लागलै,केकरो कुछ नै पचलै ।घूमेॅ लगलै गाँवकहते-गाँव कहते यहू कहलकै, जों अंग्रेज नै हित मेॅ, भारत तेॅ छोड़़ौ ई देश अभी ही, रोकौ राज तुरत मेॅ । एक बार जे गाँधी जी के , फुटलै मन के आग,जलतै रहलै आखिर यशतक ऊ, बिना जलैलै बाग । बापू के स्वर गूंजेॅ लगलै, प्रान्त-नामोॅ प्रान्त के बीच,होलै-होले लेॅ सेॅ स्वराज भी, ऐलै बहुत नगीच ।
भारत के हालत देखी केॅ, थमै नै गाँधी जी के लोर,
एक यही बस मन मेॅ उपजै, कहिया होतै एकरोॅ भोर ।
</poem>