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भारत जे मालवीय मुक्ति के बी. एच. यू. के, नींव मानसमहोत्सव के हौ रंग,राजा-रजबाड़ा के हाकिम, वहीं जैमेॅ अन्हरिया कि टापे अंग्रेजो टुप,मुक्ति लेली तरसै भारत दुबड़ी-पर्वत चुप-चुप-चुप संग
अंग्रेजोॅ के राज सबने सब अमावशकुछ बहुत कहलकै, जीवन पर गाँधी के बात जुगनू रं भुक-भुकअलग,जे भारत प्राणोॅ सुनी-सुनी के मालिक, ओकरे प्राण ठो हुक राजा-हुकरैयत, होवेॅ लागलै अलग-हुक।थलग ।
साल पर गाँधी के अठारह राष्ट्र प्रेम के सुर सौ उनहत्तर, अक्टूबर उठलै के तेॅ दोसरोॅ दिनठठले गेलै,जागी उठलै अन्धकार पर एक किरण कण गिनचकित अतिथि भीतरे-गिन-गिन।भीतर, माननीयो आतंकित छेलै ।
पोरबन्दर पर भारत मेॅ उतरी अंग्रेजी ऐलैसत्ता, भारत के केरोॅ खुललै भाग्य सब विमलचाल,के जानै आरो एकरोॅ शासन छेलै मेॅ, की छै ई तखनी यहा बरसतै भारत के होय बादल हाल
पढ़ी-लिखी परदेशोॅ की छै मेॅ जे लौटी ऐलै घरराजा-स्वदेशधनपतियो के, हीन-दीन करतूत,ओकरोॅ आँखी मेॅ नाँचै बसशासन आगू चुप हेनोॅ ज्यों, भारत केरोॅ दुखिया भेष बच्चा देखेॅ भूत
सब कुछ छोड़ी छाड़ी की नै योगीकहलकै गाँधी जी नेॅ, स्वदेशोॅ के दोषी कामोॅ ठो लेॅबचलै ?केकरो तेॅ अच्छा ही लागलै,केकरो कुछ नै पचलै ।घूमेॅ लगलै गाँवकहते-गाँव कहते यहू कहलकै, जों अंग्रेज नै हित मेॅ, भारत तेॅ छोड़़ौ ई देश अभी ही, रोकौ राज तुरत मेॅ । एक बार जे गाँधी जी के , फुटलै मन के आग,जलतै रहलै आखिर यशतक ऊ, बिना जलैलै बाग । बापू के स्वर गूंजेॅ लगलै, प्रान्त-नामोॅ प्रान्त के बीच,होलै-होले लेॅ सेॅ स्वराज भी, ऐलै बहुत नगीच
भारत के हालत देखी केॅ, थमै नै गाँधी जी के लोर,
एक यही बस मन मेॅ उपजै, कहिया होतै एकरोॅ भोर ।
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