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Kavita Kosh से
कि पास और कुछ बचा नहीं <br>
सिवा इस दर्द के <br>
जो मुझ से बड़ा है--इतना है—इतना बड़ा है कि पचा नहीं-- नहीं— <br>बल्कि मुझ से अँचा नहीं-- नहीं— <br>
इसे कहाँ धरूँ <br>
जिसे देनेवाला भी मैं कौन हूँ <br>
क्योंकि वह तो एक सच है <br>
जिसें मैं तो क्या रचता-- रचता— <br>::जो मुझी में अभी पूरा रचा नहीं! <br>
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