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03:04, 15 जून 2016
|रचनाकार=रामकुमार वर्मा
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<poem>
इस सोते संसार बीच
जग कर सज कर रजनी बाले!
कहाँ बेचने ले जाती हो,
ये गजरे तारों वाले?
मोल करेगा कौन
सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी
मत कुम्हलाने दो,
सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी
इस सोते संसार बीच <br>निर्झर के निर्मल जल में जग ये गजरे हिला हिला धोना लहर लहर कर सज कर रजनी बाले! <br>कहाँ बेचने ले जाती होयदि चूमे तो, <br>ये गजरे तारों वाले? <br><br>किंचित् विचलित मत होना
मोल करेगा कौन <br>होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी <br>लहरों ही में लहराना मत कुम्हलाने दो, <br>'लो मेरे तारों के गजरे' सूनेपन निर्झर-स्वर में अपनी निधियाँ न्यारी <br><br>यह गाना
निर्झर के निर्मल जल में <br>ये गजरे हिला हिला धोना <br>लहर लहर कर यदि चूमे तो, <br>किंचित् विचलित मत होना <br><br> होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित <br>लहरों ही में लहराना <br>'लो मेरे तारों के गजरे' <br>निर्झर-स्वर में यह गाना <br><br> यदि प्रभात तक कोई आकर <br>तुम से हाय! न मोल करे! <br>तो फूलों पर ओस-रूप में, <br>बिखरा देना सब गजरे <br><br/poem>