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कुछ दिन / रश्मि भारद्वाज
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19:09, 19 जून 2016
देह के जमे शिलाखण्ड से
मैं उतार कर अपनी केंचुली
समा देना चाहती
है
हूँ
ख़ुद को
सख़्त चट्टानों के बीच
इतने क़रीब कि वह सोख ले मेरा उद्दाम ज्वर
अनिल जनविजय
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