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आकाश के पार / हरमन हेस

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आकाश के आर-पार, घूम रहे हैं बादल
खेतों के आर-पार, हवा है
खेतों में भटक रहा मैं
अपनी मां की खोयी हुई संतान।

गली के आर-पार, झूम रही हैं पत्तियां
पेड़ों के पार, पक्षियों की चीख-पुकार
पहाड़ों के पार, दूर बहुत दूर
कहीं मेरा भी घर है।

</poem>
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