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16:27, 30 जून 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरमन हेस
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
आकाश के आर-पार, घूम रहे हैं बादल
खेतों के आर-पार, हवा है
खेतों में भटक रहा मैं
अपनी मां की खोयी हुई संतान।
गली के आर-पार, झूम रही हैं पत्तियां
पेड़ों के पार, पक्षियों की चीख-पुकार
पहाड़ों के पार, दूर बहुत दूर
कहीं मेरा भी घर है।
</poem>