ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मुतालबों का सलाम है
यूँ ही रोज़ मिलने कि की आरज़ू बड़ी रख रखाव कि की गुफ्तगू
ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है
वो दिलों में आग लगायेगा मैं दिलों कि की आग बुझाऊंगा
उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है
न उदास हो न मलाल कर, किसी बात का न ख्याल ख़याल कर कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज कि की शाम है
कोई नग्मा धुप धूप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम कि की छाँव सा
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है
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