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अंगार / अज्ञेय

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बार-बार, बार-बार <br>
मुझे अपने फूल हैं चुनना। <br>
चिता मेरी है: दुख मेरी मेरा नहीं। <br>
तुम्हारा भी बने क्यों, जिसे मैंने किया है प्यार? <br>
तुम कभी रोना नहीं, मत <br>
पर जो टूट को भी टेक दे, ले धार, सहार, <br>
उस अनन्त, उदार को <br>
कैसे सकोगे भूल-- भूल— <br>
उसे, जिस को वह चिता की आग <br>
है, होगी, हुताशन-- हुताशन— <br>जिसे कुछ भी, कभी, कुछ से नहीं सकता मार-- मार— <br>वही लो, वही रखो साज-सँवार-- सँवार— <br>वह कभी बुझने ने वाला <br>
प्यार का अंगार!
   <span style="font----size:14px">फाल्गुन शुक्ला सप्तमी, स.2022सं० २०२२]</span>
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