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राष्ट्रवाद / पवन करण

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उन्नीस सौ चौरासी को ही लें
जिसमें सिखों के विरूद्ध दंगों में
''हम सब'' राष्ट्रवादी थे
एक बड़े राष्ट्र के ऐसे राष्ट्रवादी
एक छोटे राष्ट्रवाद के
तथाकथित नागरिकों की निर्ममता से
दाढिय़ां दाढ़ियाँ नोच रहे थे, जला रहे थेउनके घरों के साथ-साथ उन्हें भी जिंदाज़िन्दा
बड़े राष्ट्रवाद के टूटने के डर से
छोटे राष्ट्रवाद को सबक सिखाते
हम राष्ट्रवादी घोंटने में जुटे थे
उन ही की रंग-बिरंगी पगडिय़ों पगड़ियों से
उनके गले, उन्हीं की तलवारों से बेधने में
मशगूल थे उनकी छातियांछातियाँ,
भोंकने को थे तत्पर
उन्हीं के पेटों में उनकी कृपाणें
उन्नीस सौ चौरासी को लेकर
राष्ट्रवाद के इस हमाम में
हम सब नंगों के मुंह मुँह अब तकबस इसीलिये इसीलिए सिले हैं
क्योंकि तब सिखों को
राष्ट्रवादियों के हाथों में ही
सबसे ज्यादा ज़्यादा हथियार मिले हैं
अपने ही पेट को चीरकर
अपना ही खून ख़ून पीना चाहता
राष्ट्रवाद बड़ा हो या छोटा
दोनों ही स्थितियों में उसके दांतदाँतऔर नाखून नाख़ून बहुत पैने होते हैं।
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