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पाँच सखी सँग भूलहिँ, सहज उक्त झंझकार।
अरध उरध झूँकि झलहि, गहु गहि अधर अधारा।
बिनु मुख मंगल गावहिँ,<ref>सखि</ref> बिनु दीपक उँजियार।
धरनी जन गुन गायो, पुलकित बारमबार।
जो जन चढेऊ हिंडोलवा,<ref>सखि</ref> वहुरि न उतरन हार॥1॥
173.
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