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Kavita Kosh से
सारे सुन्दर फूलों ने फेर लिया हो चेहरा
कि सुबह की ताज़ी हवा ने
ठान ली हो जिदज़िद
बगैर छूए ही गुज़र जाने की
नरम दोपहरी जैसे