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कितने भारी हैं ये दिन।
कहीं कोई आग नहीं जो मुझे गर्मा सके,
कोई सूरज नहीं जो हंस सके मेरे साथ,
हर चीज नंगी,
सब कुछ ठंडा और बेरहम,
यहां तक कि मेरा प्‍यार भी,
और सितारे खाली निगाहों से नीचे देख रहे,
जब से मुझे यह अहसास हुआ है
कि प्‍यार भी मर सकता है।

</poem>
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