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विनय पत्रिका / तुलसीदास

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/* राग बिलावल */
बेद-पुरान प्रगट जस जागै. तुलसी राम -भगती बर माँगै..४..
 
'''शिव-स्तुति'''
 
''३''
 
को जाँचिये संभु तजि आन.
 
दीनदयालु भगत-आरति-हर, सब प्रकार समरथ भगवान..१..
 
कालकूट-जुर जरत सुरासुर, निज पन लागि किये बिष पान.
 
दारुन दनुज. जगत-दुखदायक, मारेउ त्रिपुर एक ही बान..२..
 
जो गति अगम महामुनि दुर्लभ, कहत संत, श्रुति, सकल पुरान.
 
सो गति मरन-काल अपने पुर, देत सदासिव सबहिं समान..३..
 
सेवत सुलभ, उदार कलपतरु, पारबती-पति परम सुजान.
 
देहु काम-रिपु राम-चरन-रति, तुलसिदास कहँ क्रिपानिधान..४..
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