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मुख - 3 / प्रेमघन

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लगी बरसै सुखमा घन प्रेम,
::मनो लरि लाख गुनो लहि तेज।
धर धरे सिर के तर राहु को सोय,
::रह्यो है कलानिधि काढ़ि कलेज॥
</poem>
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