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इक ज़रा सी चाह में / आलोक यादव

124 bytes added, 03:02, 8 सितम्बर 2016
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|रचनाकार=आलोक यादव
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<poem>
इक ज़रा सी चाह में जिस रोज बिक जाता हूँ मैं
आईने के सामने उस दिन नहीं आता हूँ मैं
 
रंजो-गम उससे छुपाता हूँ मैं अपने लाख पर
नींद भी खोकर यहाँ 'आलोक' पछताता हूँ मैं
-आलोक यादव</poem>