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Kavita Kosh से
|रचनाकार=अज्ञात
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सात सहेल्यां रे झूलरे, पणिहारी जीयेलो मिरगानेणी जीयेलो
पाण्यू चाली रे तालाब, बाला जो
काळी रे कळायण उमडी ए*पणिहारी जीयेलो, मिरगानेणी*जीयेलो,
छोटोडी बूंदां रो बरसे मेह, बालाजो। बालाजोआज धराऊं धूंधलो ए पणिहारी.......... मोटोडो धारां रो बरसे मेह, बाला जो। जोभर नाडा भर नाडयां ए पणिहारी.......... भरियो-भरियो समंद तलाब, बाला जो।जो</poem>