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|रचनाकार=अज्ञात
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{{KKLokGeetBhaashaSoochi|भाषा=राजस्थानीKKCatRajasthaniRachna}}<poem>रिमझिम-रिमझिम मेहा बरसे, काळा बादळ छाया रेपिया सूं मलबां गांव चली, म्हारे पग में पड ग्या छाला रेरिमझिम...
रिमझिम-रिमझिम मेहा बरसेभरी ज्वानी म्हांने छोड गया क्यूं, काळा बादळ छाया रे। <br>जोबन का रखवाला रेपिया सूं मलबां गांव चलीसोलह बरस की रही कुंवारी, म्हारे पग में पड ग्या छाला रे। <br>अब तो कर मुकलावां रेरिमझिम........ <br><br>
भरी ज्वानी म्हांने छोड गया क्यूं, जोबन का रखवाला रे। <br>सोलह बरस की रही कुंवारी, अब तो कर मुकलावां रे। <br>रिमझिम........... <br><br> घणी र दूर सूं आई सजनवां, थांसू मिलवा रातां रे। <br>रेहाथ पकड म्हांने निकां बिठाया, कान में कर गया बातां रे।<br><br> रेरिमझिम.......</poem>